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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

ये फ़ितूरों के जंगल हमेशा बियाबान ही क्यों होते हैं?

काश !
मौन के ताले की भी कोई चाबी होती
तो जुबाँ ना यूँ बेबस होती
कलम ना यूँ खामोश होती
कोई आँधी जरूर उमडी होती

इन बेबसी के कांटों का चुभना …

मानो रूह का ज़िन्दगी के लिये मोहताज़ होना
बस यूँ गुज़रा हर लम्हा मुझ पर
ज्यूँ बदली कोई बरसी भी हो
और चूनर भीगी भी ना हो

ये फ़ितूरों के जंगल हमेशा बियाबान ही क्यों होते हैं?

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

बेरंग लिफ़ाफ़े सा जिनका वजूद


Photo: सुश्री वन्दना गुप्ता

मुझे कहा गया बेटियों पर 
कुछ लिखो,कुछ कहो 
और मैं सोच में पड गयी
क्या लिखूँ और कैसे लिखूँ 
इस सदी की या उस सदी की व्यथा 
कहो तो किस पर लिखूँ ?
बेरंग लिफ़ाफ़े सा जिनका वजूद 
कभी यहाँ तो कभी वहाँ डोलता रहा
मगर कहीं ना अपना पता मिला
और वो ढूँढती रहीं एक आशियाना
उम्र के ज़िबह होने तक …………

आह ! बेटी शब्द हथौडे सा 
सीने पर पड गया 
जब किसी ने मादा होने का 
उसे दंड दिया 
जब किसी ने अफ़ीम का सेवन
करा दिया 
जब किसी ने पायताने के नीचे
गला रेत दिया
जब किसी ने खौलते दूध में
उबाल दिया
जब किसी ने गर्भ में ही 
मरवा दिया 

बेटी पराया धन 
बेटी का कन्यादान
अब ये घर तेरा नहीं 
जैसे जुमलों ने 
उसके अस्तित्व पर 
प्रश्नचिन्ह बना दिया 
ना जाने कौन सी सोच ने
ना जाने कौन से ग्रंथ ने
ना जाने कौन से धर्म ने
ये फ़र्क पैदा किया 
जो अपने ही शरीर के अंग पर
समाजिक मान्यताओं का तेज़ाब गिरा दिया 
और झुलस गयीं सदियाँ ………
और वो अपना घर आज भी  ढूँढ रही है
फिर कहो तो कहाँ उसकी दशा बदली है 

बात चाहे शिक्षा की हो
चाहे खानपान की
बेटियों से ही त्याग कराया जाता है
कल हो या आज 
कोई खास फ़र्क नही दिखता है
क्योंकि 
तबका कोई भी हो 
ऊँचा या नीचा
छोटा या बडा 
हालात ना कहीं बदले हैं
बल्कि ये चलन तो 
ऊँचे तबके से ही
नीचले तबकों तक उतरे हैं
जिसका असर निरक्षरों पर ज्यादा दिखता है
बेशक आज का पढा लिखा भी यही सब करता है
मगर उसकी बनायी गयी राहों पर जब
कोई अनपढ चलता है तो दोषी नहीं रह जाता है 
क्योंकि 
उसके लिये तो बेटा कमाऊ पूत होता है
और बेटी बोझ …………

किस पर लिखूँ 
सोच मे हूँ 
क्योंकि
कल की तस्वीर ने 
आज भी ना रुख बदला है
कल जन्मने के बाद मरण तय था
आज जन्म से पहले 
फिर कैसे कहते हैं 
सभ्यता बदल गयी है
फिर कैसे कहते हैं 
स्थिति मे बदलाव आया है
पहले से काफ़ी ठहराव आया है
फ़र्क आया है तो सिर्फ़ इतना
कि सोनोग्राफ़ी की तकनीक ने 
खिलने से पहले ही कली को दफ़नाया है
ना सोच बदली ना मानसिकता
ना दशा ना दिशा 
फिर भी प्रश्न उठ जाते हैं 
आज तो बेहद सुखद परिस्थितियाँ हैं
बेटियाँ कल्पना चावला , मैरी काम , इन्दिरा नूई 
बन रही हैं 
उच्च पदासीन हो रही हैं
विश्व स्तर पर नाम रौशन कर रही हैं
फिर कैसे कह सकते हो 
कि व्यवस्था में दोष है 
मगर इस सत्य को ना किसी ने जाना है
सवा करोड की आबादी में
इन महिलाओं का प्रतिशत कितना है?
ना केवल महिलाओं बल्कि 
कितने प्रतिशत बेटियोँ को 
आज भी बेटे पर तरज़ीह दी जाती है
कभी ना इसका आकलन किया गया 
गर आँकडों पर गौर किया जायेगा
तो भयावह सच सामने आयेगा 
बेटियों की दशा और दुर्दशा में 
ना कल कोई फ़र्क था 
और ना आज कोई ज्यादा फ़र्क नज़र आयेगा
जब तक ना बेटियों के महत्त्व को
दिल से स्वीकारा जायेगा
जब तक ना बेटियों के अस्तित्व के लिये 
एक आह्वान खुद की जागृति का 
खुद से ना किया जायेगा
तस्वीर का रुख तो धुँधला ही नज़र आयेगा 
क्योंकि
मोतियाबिंद के इलाज के लिये चीर फ़ाड तो डाक्टर ही किया करता है 
और हम खुद ही बीमार हैं
और इलाज के लिये डाक्टर भी खुद ही हैं 
अब ये हम पर है 
पिछली सडी गली परिपाटियों को पीटते रहें
या एक नया इतिहास लिखें
जो आने वाले कल का स्वर्णिम पल बने
शायद कुछ भी कहना या लिखना तभी सार्थक होगा
और जिस दिन हर घर में बेटियों के आगमन पर ढोल नगाडा बजेगा
वो ही दिन , वो ही पल  पूर्णता का सूचक होगा…………एक नयी क्रांति का आगाज़ होगा


23 फ़रवरी को डायलाग में " बेटियों"  पर कविता पाठ करते हुये

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

फिर भी ना जाने क्यूँ रह जाता है कुछ अनकहा

सुनो
तुमसे सब कुछ कह देने के बाद भी
रह जाता है कुछ अनकहा
यूं तो हमारा रिश्ता
पहुँच चुका है भेद कर
ज़िन्दगी के हर मुकाम को
मगर फिर भी
न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा

दुनियादारी की बातें हों

या सामाजिक बातें
या हो कोई समस्या
हम बेबाकी से कर लेते हैं
बहस और समाधान उस पर
मगर फिर भी
जब बात आती है
हमारे अपने रिश्ते की
न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा

हम तुम इक दूजे के

न केवल जीवन साथी बने
बल्कि हमने तो जीवन को
मित्रवत भी जीया
अपने रिश्ते को
अपनेपन की ऊर्जा से
एक नया रूप दिया
तभी तो कर लेते हैं हम
दुनियाजहान की बातें
कार्यक्षेत्र हो या ज़िन्दगी
कर लेते हैं सबकी बातें
फिर भी न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा

जानते हो क्या है वो

हमारा अपना रिश्ता
जो हम मुखर नहीं कर पाते हैं
जिसे हम मौन में ही परिभाषित करते हैं
और मौन में ही जीना चाहते हैं
और हमारा रिश्ता मौन की चौखट पर खड़ा
मौन होने लगता है
मौन की चट्टान न जाने क्यूँ
हम तोड़ नहीं पाते हैं
जो इक दूजे से चाहते हैं
जाने क्यूँ कह नहीं पाते हैं
किसी औपचारिकता का मोहताज नहीं
यूं तो हमारा रिश्ता
फिर भी ना जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा

शायद ये रिश्ते का वो पड़ाव होता है

जहाँ मौन को मुखरता की जरूरत होती है
और हम समझ नहीं पाते हैं
या शायद अपने हाव भाव से
समझा नहीं पाते  हैं
और साथी से सिर्फ यही चाहत होती  हैं
जो मैं सोचूँ वो बिना कहे समझ जाए
जो मैं चाहूं वो बिना कहे कर जाए
इतना वक्त बीता क्या वो अब भी
ना मेरा मन समझा
ना जाने क्यूँ ये चाह  बलवती रहती है
जो अच्छे खासे रिश्ते में
अदृश्य दीवार सी बनी रहती है
ना जाने क्यूँ फिर भी
कुछ अनकहा रह जाता है

उम्र का कोई भी पड़ाव हो

साथी के साथ तो रिश्ता ऐसा होता है
ज्यों नवयुगल का होता है
वहां न कोई पर्दा होता है
इसलिए चाहतें भी वहीँ फन उठती हैं
इक युगलप्रेमी से व्यवहार की
प्यार की , मनुहार की
इक दूजे को समझने की
वहीँ तो ज्यादा दरकार होती है
बस यही वो विषम झाड़ियाँ होती हैं
जो राहों को दुर्गम करती हैं
अच्छे भले रिश्ते में
गहरी खाइयाँ पैदा करती हैं

अबोलेपन की विषमता का जंगल 
हम अपने रिश्ते में ही क्यूँ उगा लेते हैं 
ये प्रेम की पराकाष्ठा होती है 
या चाहत की इंतेहा कि 
बिना कहे भी 
साथी से ही सब कुछ पाने की चाह  
इतनी बलवती होती है
इसलिए सब कुछ जानते समझते भी
फिर भी न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा…………

 

रविवार, 17 फ़रवरी 2013

ज़िंदगी के सुनहरे लम्हे यादों की धरोहर बन गये


दो अजनबी सितारों ने बसाया जहान 
खट्टे मीठे अनुभवों का बनाया मचान
सफ़र पर जो निकले तो रुके ना कदम
जब तक ना चाँदनी की गोद मे बनाया मुकाम


चलो एक बार फिर से गुलाब दिया जाये
 
चलो धूम मचायें ;)

जयमाल की रस्म भी आखिर निभा ही दी ;)

दीदी और भाभी
देवरानी के संग

बच्चे मन के सच्चे

सलामत रहे दोस्ताना



ये दोस्ती 










मेरा भांजा और भानजी



देवर देवरानी संग


बडे जीजाजी



मेरी छोटी भानजी



भैया भाभी के साथ




छोटे भानजा और उसकी पत्नी


बडा भानजा और उसकी बीवी



मेरी मम्मी


चारों भाई बहन






मेड फ़ार ईच अदर




सरगम अपने बेटे के साथ मेरी भानजी

 





बडी ननद

बडी दीदी की फ़ैमिली



दोनों ननदें










छोटी ननद और नन्दोई




बडी ननद की फ़ैमिली


बडी दीदी की फ़ैमिली





मौसी बेटा किचन मे नाचते हुए





कीर्तन का आनन्द लेते हुये





























ईश्वर का आशीर्वाद लेते हुये





मस्ती भरे पल


























प्रीत को चढाया पहला सोपान
चलो साजन बनायें अब दूजा जहान

निकल पडे हैं अब अगले सफ़र की ओर :)